Mahaveer swami ki patni ka naam kya tha | महावीर स्वामी की पत्नी का नाम क्या था?
आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताएँगे कि “सबसे लंबी माल गाड़ी का नाम क्या है?”. यहाँ हम आपके लिए हरेक छोटे छोटे जानकारी को बताने की कोशिश करते हैं.और Mahaveer swami Ki patni ka naam kya tha? ऐसे सवाल UPSC, State PSC, IBPS, SSC, Railway, NDA, Police Exams और अन्य के लिए उपयोगी होते हैं. यहाँ हम आपको महावीर स्वामी की पतनी और उनके इतहास के बारे में बताने वाले है. तो इस आर्टिकल को ध्यान से पढ़े.
Mahaveer swami ki patni ka naam kya tha | महावीर स्वामी की पत्नी का नाम क्या था?
महावीर स्वामी की पत्नी का का ‘यशोदा’ था.और महावीर का दूसरा नाम वर्द्धमान और उन्होंने श्वेताम्बर सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार महवीर ने यशोदा से विवाह रचाई थी. महावीर स्वामी का जन्म वैशाली के नजदीक कुण्डग्राम के ज्ञातृक कुल के प्रधान सिद्धार्थ के यहाँ 540 ई.पू. में हुआ था. महावीर के माता का नाम ‘त्रिशला’ था जो कि लिच्छवी राजकुमारी थी.
महावीर स्वामी जैन धर्म के एक वास्तविक संस्थापक में से थे. जो कि जैन धर्म में 24वाँ तीर्थंकर थे. वर्द्धमान यानि महवीर के बङे भाई का नाम नंदिवर्धन और उनके बहन का नाम सुदर्शना था.
महावीर स्वामी का जीवन परिचय (Mahaveer swami history)
महावीर स्वामी के यशोदा से सादी किये थे. और उनकी एक बेटी भी हुई थी जिसका नाम अयोज्या(अनविद्या) था. जिसे प्रियदर्शना नाम से भी जाना जाता हैं. और उसका विवाह जामालि से हुआ जो कि महावीर का प्रथम शिष्य था.
लेकिन दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार वो एक बाल ब्रह्मचारी थे और उनके सादी को कोई मन्यता प्राप्त नही हुआ था.
ईसा से 599 साल पहले गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यह तीसरे संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस को जन्म लिए थे. और उनका नामा शुरू में वर्धमान था और बाद में स्वामी महावीर बन गये. साथ ही साथ इन्हें ‘वीर’, ‘अतिवीर’ और ‘सन्मति’ के नाम से भी जाना जाता हैं या कहाँ जाता हैं.
महावीर स्वामी अहिंसा के मार्ग पर चलते थे अहिंसा उनका सबसे बड़ा सिद्धांत हैं तथा उन्होंने अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना के लिए बताया हैं. इसलिए कोई भी जैन धर्म के लोग एक ही उपदेश देते है – “अहिंसा ही परम धर्म ” हैं. अहिंसा ही परम ब्रह्म, सुख शांति, उद्धार करने वाली, मानव का सच्चा धर्म और मानव का सच्चा कर्म भी हैं.